Bhaagwat Geeta Me Ek Ishwarwad in hindi--GEETA AUR QURAN
श्रीमद भागवत पुराण अध्याय 8 श्लोक 9
मनुष्य को चाहिए की ईश्वर का ध्यान निम्न रूपों में करे -
- ईश्वर सर्वज्ञ यानी सबकुछ जानता है|
- वह पुरातन यानी अत्यंत प्राचीनतम अर्थात जब कुछ भी नही था तभी से मौजुद है
- वे नियंता यानि समस्त शासको के शासक है
- वे लघुतम से भी लघुतम है यानी समस्त पदार्थो में इतने सूक्ष्म है की उन्हें कोई देख नहीं सकता
- प्रत्येक जीव का पालन करता है
- समस्त भौतिक बुद्धि से परे है यानी कोई भी मनुष्य भौतिक ज्ञान से उसे जान नहीं सकता केवल अध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा ही उसे जाना जा सकता है
- वे नित्य पुरुष के रूप में है यानी वे हमेशा मौजूद रहने वाले है
- वे आदित्य वर्णम यानी सूर्य की भाति प्रकाशमान राजा है
श्रीमद भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 22
ईश्वर जो सबसे बड़ा है अनन्य भक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है यधपि वे अपने धाम मेंविराजमान है तो भी वे हर जगह मौजूद है और सम्पूर्ण सृष्टि उसके अन्दर स्थित है
भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 18
ईश्वर ही लक्ष्य ,पालनकर्ता ,स्वामी ,साक्षी(गवाह) ,धाम,शरणस्थली तथा अत्यंत प्रिय मित्र है |वे ही सृष्टि
,प्रलय ,सबका आधार ,आश्रय तथा अविनाशी बीज है |
भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 23
जो लोग अन्य देवताओ की पूजा करते है ,वास्तव में वे ईश्वर की ही पूजा करते है लेकिन वे इसे गलत तरीके
से करते है | यानि सनातन धर्म में बहुदेव वाद गलत है |
भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 24
ईश्वर ही समस्त यज्ञो के एकमात्र भोक्ता तथा स्वामी है | जो लोग उनके वास्तविक दिव्य स्वभाव (प्रकृति) को नहीं पहचान पाते वे नरक को चले जाते है |
भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 29
ईश्वर न तो किसी से घृणा करता है न ही किसी के साथ पक्षपात (सभी के साथ इन्साफ करने वाला ) करता है
वे सबके लिए एकसी विचारधारा रखते है (लोग ही उन्हें अलग अलग भाव से सोचते है ) जो ईश्वर की भक्ति पूर्वक सेवा करता है वह ईश्वर का मित्र है और ईश्वर उसका मित्र है ईश्वर के भक्त उनमे हमेसा मौजूद रहते है
भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक 20
यधपि ईश्वर एक है लेकिन वे सारे आकाश तथा सारे लोको एवं उनके बीच समस्त आकाश में मौजूद है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 13
भगवान् श्री कृष्ण कहते है की मैं तुम्हे ब्रह्म के बारे में बतलाऊंगा जो जानने योग्य है यह बरह्म जो अनादि है (जिसका न आदि है ना अंत ) मुझसे भी बढ़कर हैं इस भौतिक जगत के समस्त कार्यो कारण से परे है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 14
उस परमेश्वर के हाथ, पाँव, आँखें, सिर , मुंह, तथा कान हर जगह है इस प्रकार परमात्मा सभी वस्तुओ में मौजूद रहकर स्थित है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 15
परमात्मा सारे इन्द्रियों के मूल स्रोत है फिर भी वे इन्द्रियों से रहित है वे समस्त जीवो के पालन करता होकर भी सभी प्रकार की आसक्ति (मोह ) से रहित है वे प्रकृति के तीनो गुणों से परे है फिर भी वे भौतिक प्रकृति के समस्त गुणों के स्वामी है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 16
परम सत्य ईश्वर चेतना तथा चेतना रहित सारे जीवो के भीतर तथा बाहर मौजूद है सूक्ष्म होने के कारण उन्हें भौतिक इन्द्रियों के द्वारा न तो जाना जा सकता है और ना ही देखा जा सकता है वे अत्यंत दूर अपने धाम में रहते है लेकिन हम सभी के नजदीक भी है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 17
परमात्मा सभी जीवो के बीच विभाजित (खंड खंड में ) प्रतीत होता है लेकिन वह कभी भी विभाजित नहीं है वह एक रूप में स्थित है यधपि वह प्रत्येक जीव का पालनकर्ता (विष्णु ) है लेकिन यह समझना चाहिए की वह सबों का संहारकर्ता (रूद्र) भी है और सभी का जन्मदाता (ब्रह्मा) भी है
भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 18
ईश्वर समस्त प्रकाशमान वस्तुओ के प्रकाश स्रोत है वे भौतिक अन्धकार से परे है और और अगोचर (जो इस दृश्य जगत में होते हुए भी इन्द्रियों के द्वारा न जाना जा सके, ना देखा जा सके ) | उनको जान लेना ही ज्ञान, वे ही जानने योग्य और उनको पाना ही ज्ञान का लक्ष्य है वे सबके हृदय में स्थित है|
भागवत गीता अध्याय13 श्लोक 25
कुछ लोग परमात्मा को ध्यान के द्वारा अपने भीतर देखते है ,तो दूसरे लोग ज्ञान के अनुशीलन द्वारा
और कुछ ऐसे है जो निष्काम कर्मयोग द्वारा देखते है |
उनकी पूजा करने लगते हैं |ये लोग भी प्रमाणिक पुरुषो से श्रवण करने की मनोवृति होने के कारण जन्म तथा
मृत्यु के पथ को पार कर जाते हैं |
भागवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3भागवत गीता अध्याय 13 श्लोक 26
ऐसे भी लोग है जो अध्यात्मिक ज्ञान से अवगत नहीं होते पर अन्यो से परम पुरुष (ईश्वर) के विषय में सुनकरउनकी पूजा करने लगते हैं |ये लोग भी प्रमाणिक पुरुषो से श्रवण करने की मनोवृति होने के कारण जन्म तथा
मृत्यु के पथ को पार कर जाते हैं |
हे भरतपुत्र !ब्रह्म(परमात्मा) मेरा जन्म स्रोत है |जब समस्त जीवो के जन्म की सम्भावना होती है
तो मै उसके गर्भ में बीज के रूप में धारण होता हूँ |
भागवत गीता अध्याय 14 श्लोक 4
हे कुन्तीपुत्र ! तुम यह जान लो कि समस्त प्रकार की जीव योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारासंभव है और मैं उनका बीजप्रदाता पिता हूँ |
भागवत गीता अध्याय 14 श्लोक 5
भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है |ये है सतोगुण ,रजोगुण तथा तमोगुण |हे महाबाहु अर्जुन !जब शाश्वतजीव प्रक्रति के संपर्क में आता है ,तो वह इन गुणों से बन्ध जाता है |
भागवत गीता अध्याय14 श्लोक 11
जब कोई यह अच्छी तरह जान लेता है कि समस्त कार्यो में प्रकृति के तीनो गुणों के अतिरिक्त अन्य कोई कर्तानहीं है और जब वह परमेश्वर को जान लेता है ,जो इन तीनो गुणों से परे है ,तो वह मेरे दिव्य स्वभाव को प्राप्त
होता है |
भागवान कृष्ण का स्वभाव :-- वे सदैव बैकुंठ लोक (शाश्वत जगत या अध्यात्मिक जगत) में रहते है ,सृष्टि की उत्पत्ति के समय न तो वह भौतिक जगत में जन्म लेते है और न ही वह सृष्टि के नष्ट होने पर विचलित होते है |
भागवत गीता अध्याय 15 श्लोक 6
मेरा वह परम धाम न तो सूर्य या चन्द्र के द्वारा प्रकाशित होता है और न अग्नि या बिजली से |जो लोग वहांपहुँचजाते है ,वे इस भौतिक जगत में फिर से लौट कर नहीं आते |
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