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ईश्वर की भौतिक जगत में आकार का रूप देकर उनकी पूजा करना सही है या नहीं?

          ईश्वर की भौतिक जगत में   आकार का रूप देकर उनकी पूजा करना सही है या नहीं?


भागवत गीता अध्याय 4 श्लोक 6
इश्वर की
ईश्वर अजन्मा तथा अविनाशी है इस श्लोक के अनुसार वे कभी पैदा नहीं होते,
अतः ईश्वर भौतिक जगत का शरीर धारण नहीं करते है|

भागवत गीता अध्याय 4 श्लोक 8
इस श्लोक के अनुसार भगवान् हर युग में प्रकट होते है पैदा नहीं होते है|
यह ऊपर के श्लोक को सार्थक करता है |

अध्याय 7 श्लोक 12
इस श्लोक के अनुसार भगवान्  प्रकृति  के तीनो गुणों से परे है अर्थात प्रकृति का उनपर
कोई प्रभाव नहीं पड़ता,यदि कोई उसका साकार रूप बनाता है तो प्रकृति का उनपर प्रभाव पड़ेगा और मौसमके अनुसार उनमें परिवर्तन होगा जबकि प्रकृति उनके अधीन है और वे अजन्मा है|

भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 24
भगवान् कहते है कि जो मुझे इस जगत में स्वरुप को धारण करने वाला समझता है वह अल्पज्ञानी है
क्यूंकि ये तो अविनाशी (अक्षर) है| जबकि रूपों में तो निरंतर परिवर्तन (क्षर) होता रहता है|

भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 25
भगवान कहते है की वे लोग मुर्ख और अज्ञानी है जो मुझे प्रकट रूप में मानते है उनके लिए तो मैं कभी प्रकट हूँ ही नहीं क्यूंकि मैं अपनी अंतरंगा शक्ति से ढका हुआ रहता हूँ |क्यूंकि मैं अजन्मा और अविनाशी हूँ


भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 5
इसके अनुसार ईश्वर का नाम लेना ही महान है मरते समय उसका नाम का स्मरण करने से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है

भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 9

भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 18

इस श्लोक के अनुसार सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा की  रात्री होने पर नष्ट (प्रलियंती ) हो जाते है इस प्रकार इस जगत का कोई भी तत्व ईश्वर का स्वरुप नहीं  माना जा सकता क्यूंकि वे अविनाशी  (अक्षर) और शाश्वत (सदा एक सा रहने वाला ) है |

भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 22

ईश्वर तो अपने परम धाम में मौजूद है |अत: उन्हें साकार रूप देकर स्थान देने की कोई आवश्यकता नहीं है
फिर भी वह हर जगह अप्रत्यक्ष रूप में मौजूद है |
 भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 4
इस श्लोक के अनुसार ईश्वर सम्पूर्ण जगत में  अप्रकट रूप में मौजूद है सारे जीव उनमे (प्रकट रूप में ) है
यानी वे सभी जीवो को देख सकते है लेकिन वे जीव में (प्रकट रूप में) नहीं है यानि जीव उन्हें नही देख सकते

भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 5
इस श्लोक में ईश्वर कहते है की मैं इस विराट अभिव्यक्ति (दृश्य जगत) का अंश नहीं है
अर्थात इस जगत में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह भगवान् का तो अंश है लेकिन भगवान् उनका अंश नही है

भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 8
इस श्लोक के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर की इच्छा से नष्ट हो जाती है अतः वे इस सृष्टि के अंश नहीं है
और न ही इनका कोई भी स्वरुप ईश्वर का स्वरुप हो सकता है क्योकि वे अविनाशी और शाश्वत है

भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 11
इस श्लोक में सबसे ख़ास तीन शब्द --"मानुषीम(मनुष्य रूप में ), तनुम-शरीर;आश्रितम-मानते हुए" 
 यानी जो ईश्वर को मनुष्य रूप में शरीर धारण करने वाला मानता है वह मुर्ख है अर्थात ईश्वर मनुष्यों जैसा नही हो सकता उनकी प्रकृति तो इस भौतिक जगत की प्रकृति से बिलकुल अलग है 

भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 12 
इस श्लोक के अनुसार जो ईश्वर को मनुष्य की तरह ही शारीर धारण करने वाला मानता है वह मोह्ग्रष्ट आसुरी 
और नास्तिक विचारों के होते है उन्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है तथा उनके सारे कर्म और ज्ञान द्वारा  किया गया सारे मेहनत बेकार हो जाते है|

भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक 4 
 अर्जुन ईश्वर के विश्वरूप को देखने की इच्छा प्रकट करता है 

भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक 7 
इस श्लोक के अनुसार भागवान श्री कृष्ण कहते है की हे अर्जुन तुम जो भूत काल में हो चूका है जो वर्तमान में हो रहा है और जो भविष्य में होने वाला है मेरे शरीर में देखो जो तूम देखने की इच्छा रखते हो 

भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक 8 
इस श्लोक के अनुसार श्री कृष्ण कहते है की तुम इशेअर के विश्वरूप को सामान्य आखों से नही देख सकते 
इसके लिए में तुम्हे दिव्य आखें दे रहा हूँ इस प्रकार ऊपर के तीन श्लोको से पता चलता है की ईश्वर को सामान्य आखों से नहीं देखा जा सकता है| 

भगवत गीता अध्याय 12 श्लोक 2 
इस श्लोक में भगवान कहते है की यदि कोई मेरा साकार रूप बनाना चाहे तो अपने मन को ही भगवान् को साकार रूप में एकाग्र कर ले वैसा व्यक्ति भगवान् दुवारा परम सिद्ध माना जाता है|

भगवत गीता अध्याय 13 श्लोक 16 
इस श्लोक के अनुसार ईश्वर समस्त जीवो के अन्दर और बाहर इतने सूक्ष्म रूप में मौजूद रहते है की भौतिक इन्द्रियों द्वारा न तो उसे जाना जा  सकता है ना ही उसे देखा जा सकता है

भागवत गीता अध्याय 16 श्लोक 10
इस श्लोक के अनुसार जो लोग नष्ट(क्षणभंगुर) होने वाले वस्तुओ को पवित्र होकर पूजने का व्रत लिए हुए रहते है वास्तव में वे कभी पवित्र होते ही नही बल्कि वे अपवित्र रहते है क्योकि  वे आसुरि और मोहग्रस्त होते है


आगे Post में हम भागवत गीता में   एक ईश्वर वाद के बारे में पढेंगे...
To Be Continue...................................



                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  

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